Summary
Who remains eal to honour and to dishonour, and eal to the sides of [both] the friend and the foe; and who has given up all fruits of his initiatives-he is said to have transcended the Strands.
पदच्छेदः
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मानावमानयोस्तुल्यस्तुल्यो | मान–अवमान (७.२)–तुल्य (१.१)–तुल्य (१.१) |
मित्रारिपक्षयोः | मित्र–अरि–पक्ष (७.२) |
सर्वारम्भपरित्यागी | सर्व–आरम्भ–परित्यागिन् (१.१) |
यो | यद् (१.१) |
मद्भक्तः | मद्–भक्त (१.१) |
स | तद् (१.१) |
मे | मद् (६.१) |
प्रियः | प्रिय (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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मा | ना | व | मा | न | यो | स्तु | ल्य |
स्तु | ल्यो | मि | त्रा | रि | प | क्ष | योः |
स | र्वा | र | म्भ | प | रि | त्या | गी |
गु | णा | ती | तः | स | उ | च्य | ते |