Summary
Holding to their insatiable desire; being possessed by hypocricy, avarice, and pride; and holding evil intention, these cruel men wander with impure resolve.
पदच्छेदः
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काममाश्रित्य | काम (२.१)–आश्रित्य (√आ-श्रि + ल्यप्) |
दुष्पूरं | दुष्पूर (२.१) |
दम्भमानमदान्विताः | दम्भ–मान–मद–अन्वित (१.३) |
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्ते | मोह (५.१)–गृहीत्वा (√ग्रह् + क्त्वा)–असत्–ग्राह (२.३)–प्रवर्तन्ते (√प्र-वृत् लट् प्र.पु. बहु.) |
ऽशुचिव्रताः | अशुचि–व्रत (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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का | म | मा | श्रि | त्य | दु | ष्पू | रं |
द | म्भ | मा | न | म | दा | न्वि | ताः |
मो | हा | द्गृ | ही | त्वा | स | द्ग्रा | हा |
न्प्र | व | र्त | न्ते | ऽशु | चि | व्र | ताः |