Summary
Clinging to this view, the inauspcious men of the ruined Souls, of the poor intellect, and of the cruel deeds, strive for the destruction of the world.
पदच्छेदः
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एतां | एतद् (२.१) |
दृष्टिमवष्टभ्य | दृष्टि (२.१)–अवष्टभ्य (√अव-स्तम्भ् + ल्यप्) |
नष्टात्मानो | नष्ट (√नश् + क्त)–आत्मन् (१.३) |
ऽल्पबुद्धयः | अल्पबुद्धि (१.३) |
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः | प्रभवन्ति (√प्र-भू लट् प्र.पु. बहु.)–उग्र–कर्मन् (१.३) |
क्षयाय | क्षय (४.१) |
जगतो | जगन्त् (६.१) |
ऽहिताः | अहित (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ए | तां | दृ | ष्टि | म | व | ष्ट | भ्य |
न | ष्टा | त्मा | नो | ऽल्प | बु | द्ध | यः |
प्र | भ | व | न्त्यु | ग्र | क | र्मा | णः |
क्ष | या | य | ज | ग | तो | ऽहि | ताः |