Summary
What is offered aiming at fruit and also only for the sake of display-know that sacrifice to be of the Rajas (Strand) and to be transitary and impermanent.
पदच्छेदः
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अभिसंधाय | अभिसंधाय (√अभिसम्-धा + ल्यप्) |
तु | तु (अव्ययः) |
फलं | फल (२.१) |
दम्भार्थमपि | दम्भ–अर्थ (२.१)–अपि (अव्ययः) |
चैव | च (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
यत् | यद् (१.१) |
इज्यते | इज्यते (√यज् प्र.पु. एक.) |
भरतश्रेष्ठ | भरत–श्रेष्ठ (८.१) |
तं | तद् (२.१) |
यज्ञं | यज्ञ (२.१) |
विद्धि | विद्धि (√विद् लोट् म.पु. ) |
राजसम् | राजस (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | भि | सं | धा | य | तु | फ | लं |
द | म्भा | र्थ | म | पि | चै | व | यत् |
इ | ज्य | ते | भ | र | त | श्रे | ष्ठ |
तं | य | ज्ञं | वि | द्धि | रा | ज | सम् |