Summary
The worship to the gods, to the twice-born, to the elders and to the wise; the purity, the honesty, the state of continence, and the harmlessness-all this is said to be bodily austerity.
पदच्छेदः
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देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं | देव–द्विज–गुरु–प्राज्ञ–पूजन (१.१) |
शौचमार्जवम् | शौच (१.१)–आर्जव (१.१) |
ब्रह्मचर्यमहिंसा | ब्रह्मचर्य (१.१)–अहिंसा (१.१) |
च | च (अव्ययः) |
शारीरं | शारीर (१.१) |
तप | तपस् (१.१) |
उच्यते | उच्यते (√वच् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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दे | व | द्वि | ज | गु | रु | प्रा | ज्ञ |
पू | ज | नं | शौ | च | मा | र्ज | वम् |
ब्र | ह्म | च | र्य | म | हिं | सा | च |
शा | री | रं | त | प | उ | च्य | ते |