Summary
The unfailing content because of which one restrains, with Yoga, the activities of mind, the living breath and the senses-that content is considered to be of the Sattva (Strand).
पदच्छेदः
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धृत्या | धृति (३.१) |
यया | यद् (३.१) |
धारयते | धारयते (√धारय् लट् प्र.पु. एक.) |
मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः | मनस्–प्राण–इन्द्रिय–क्रिया (२.३) |
बन्धं | बन्ध (२.१) |
मोक्षं | मोक्ष (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
या | यद् (१.१) |
वेत्ति | वेत्ति (√विद् लट् प्र.पु. एक.) |
बुद्धिः | बुद्धि (१.१) |
सा | तद् (१.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
सात्त्विकी | सात्त्विक (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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धृ | त्या | य | या | धा | र | य | ते |
म | नः | प्रा | णे | न्द्रि | य | क्रि | याः |
यो | गे | ना | व्य | भि | चा | रि | ण्या |
धृ | तिः | सा | पा | र्थ | सा | त्त्वि | की |