Summary
Where Krsna, the Lord of Yogins remains, where the son of Prtha holds his bow, there lie fortune, victory, prosperity and firm justice-so I believe.
पदच्छेदः
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यत्र | यत्र (अव्ययः) |
योगेश्वरः | योगेश्वर (१.१) |
कृष्णो | कृष्ण (१.१) |
यत्र | यत्र (अव्ययः) |
पार्थो | पार्थ (१.१) |
धनुर्धरः | धनुस्–धर (१.१) |
तत्र | तत्र (अव्ययः) |
श्रीर्विजयो | श्री (१.१)–विजय (१.१) |
भूतिर्ध्रुवा | भूति (१.१)–ध्रुव (१.१) |
नीतिर्मतिर्मम | नीति (१.१)–मति (१.१)–मद् (६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | त्र | यो | गे | श्व | रः | कृ | ष्णो |
य | त्र | पा | र्थो | ध | नु | र्ध | रः |
त | त्र | श्री | र्वि | ज | यो | भू | ति |
र्ध्रु | वा | नी | ति | र्म | ति | र्म | म |