Summary
Death is certain indeed for what is born; and birth is certain for what is dead. Therefore you should not lament over a thing that is unavoidable.
पदच्छेदः
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जातस्य | जात (√जन् + क्त, ६.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
ध्रुवो | ध्रुव (१.१) |
मृत्युर् | मृत्यु (१.१) |
ध्रुवं | ध्रुव (१.१) |
जन्म | जन्मन् (१.१) |
मृतस्य | मृत (√मृ + क्त, ६.१) |
च | च (अव्ययः) |
तस्मादेवं | तस्मात् (अव्ययः)–एवम् (अव्ययः) |
विदित्वैनं | विदित्वा (√विद् + क्त्वा)–एनद् (२.१) |
नानुशोचितुमर्हसि | न (अव्ययः)–अनुशोचितुम् (√अनु-शुच् + तुमुन्)–अर्हसि (√अर्ह् लट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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जा | त | स्य | हि | ध्रु | वो | मृ | त्यु |
र्ध्रु | वं | ज | न्म | मृ | त | स्य | च |
त | स्मा | द | प | रि | हा | र्ये | ऽर्थे |
न | त्वं | शो | चि | तु | म | र्ह | सि |