Summary
O source of joy to the Kurus ! The knowledge in the form of determination is just one; [but] the knowledge (thoughts) of those who do not have determination, has many branches and has no end.
पदच्छेदः
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व्यवसायात्मिका | व्यवसाय–आत्मक (१.१) |
बुद्धिरेकेह | बुद्धि (१.१)–एक (१.१)–इह (अव्ययः) |
कुरुनन्दन | कुरु–नन्दन (८.१) |
बहुशाखा | बहु–शाखा (१.१) |
ह्यनन्ताश्च | हि (अव्ययः)–अनन्त (१.३)–च (अव्ययः) |
बुद्धयो | बुद्धि (१.३) |
ऽव्यवसायिनाम् | अव्यवसायिन् (६.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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व्य | व | सा | या | त्मि | का | बु | द्धि |
रे | के | ह | कु | रु | न | न्द | न |
ब | हु | शा | खा | ह्य | न | न्ता | श्च |
बु | द्ध | यो | ऽव्य | व | सा | यि | नाम् |