Summary
What portion in a reservoir, flooded with water everywhere, is useful [for a man in thirst], that much portion [alone] in all the Vedas is useful for an intelligent student of the Vedas.
पदच्छेदः
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यावानर्थ | यावत् (१.१)–अर्थ (१.१) |
उदपाने | उदपान (७.१) |
सर्वतः | सर्वतस् (अव्ययः) |
संप्लुतोदके | संप्लुत (√सम्-प्लु + क्त)–उदक (७.१) |
तावान्सर्वेषु | तावत् (१.१)–सर्व (७.३) |
वेदेषु | वेद (७.३) |
ब्राह्मणस्य | ब्राह्मण (६.१) |
विजानतः | विजानत् (√वि-ज्ञा + शतृ, ६.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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या | वा | न | र्थ | उ | द | पा | ने |
स | र्व | तः | सं | प्लु | तो | द | के |
ता | वा | न्स | र्वे | षु | वे | दे | षु |
ब्रा | ह्म | ण | स्य | वि | जा | न | तः |