Summary
Let your claim lie on action alone and never on the fruits; you should never be a cause for the fruits of action; let not your attachment be to inaction.
पदच्छेदः
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कर्मण्येवाधिकारस्ते | कर्मन् (७.१)–एव (अव्ययः)–अधिकार (१.१)–त्वद् (६.१) |
मा | मा (अव्ययः) |
फलेषु | फल (७.३) |
कदाचन | कदाचन (अव्ययः) |
मा | मा (अव्ययः) |
कर्मफलहेतुर्भूर् | कर्मन्–फल–हेतु (१.१)–भूः (√भू म.पु. ) |
मा | मा (अव्ययः) |
ते | त्वद् (६.१) |
सङ्गो | सङ्ग (१.१) |
ऽस्त्वकर्मणि | अस्तु (√अस् लोट् प्र.पु. एक.)–अकर्मन् (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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क | र्म | ण्ये | वा | धि | का | र | स्ते |
मा | फ | ले | षु | क | दा | च | न |
मा | क | र्म | फ | ल | हे | तु | र्भू |
र्मा | ते | स | ङ्गो | ऽस्त्व | क | र्म | णि |