Summary
The Bhagavat said O son of Prtha ! When a man casts off all desires existing in his mind and remains content in the Self by the self (mind), then he is called 'a man-of-stabilized-intellect.
पदच्छेदः
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प्रजहाति | प्रजहाति (√प्र-हा लट् प्र.पु. एक.) |
यदा | यदा (अव्ययः) |
कामान्सर्वान्पार्थ | काम (२.३)–सर्व (२.३)–पार्थ (८.१) |
मनोगतान् | मनस्–गत (√गम् + क्त, २.३) |
आत्मन्येवात्मना | आत्मन् (७.१)–एव (अव्ययः)–आत्मन् (३.१) |
तुष्टः | तुष्ट (√तुष् + क्त, १.१) |
स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते | स्थित (√स्था + क्त)–प्रज्ञा (१.१)–तदा (अव्ययः)–उच्यते (√वच् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प्र | ज | हा | ति | य | दा | का | मा |
न्स | र्वा | न्पा | र्थ | म | नो | ग | तान् |
आ | त्म | न्ये | वा | त्म | ना | तु | ष्टः |
स्थि | त | प्र | ज्ञ | स्त | दो | च्य | ते |