Summary
When he withdraws all his sense-organs from sense-objects, just as a tortoise does all of its own limbs, then he is declared to be a man-of-stabilized-intellect.
पदच्छेदः
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तस्माद्यस्य | तस्मात् (अव्ययः)–यद् (६.१) |
महाबाहो | महत्–बाहु (८.१) |
निगृहीतानि | निगृहीत (√नि-ग्रह् + क्त, १.३) |
सर्वशः | सर्वशस् (अव्ययः) |
नाभिनन्दति | न (अव्ययः)–अभिनन्दति (√अभि-नन्द् लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
द्वेष्टि | द्वेष्टि (√द्विष् लट् प्र.पु. एक.) |
तस्य | तद् (६.१) |
प्रज्ञा | प्रज्ञा (१.१) |
प्रतिष्ठिता | प्रतिष्ठित (√प्रति-स्था + क्त, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | स्मा | द्य | स्य | म | हा | बा | हो |
नि | गृ | ही | ता | नि | स | र्व | शः |
इ | न्द्रि | या | णी | न्द्रि | या | र्थे | भ्य |
स्त | स्य | प्र | ज्ञा | प्र | ति | ष्ठि | ता |