Summary
Better is one's own duty, [though] it lacks in merit, than the well-performed duty of another; better is the ruin in one's own duty than the good fortune from another's duty.
पदच्छेदः
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श्रेयान्स्वधर्मो | श्रेयस् (१.१)–स्वधर्म (१.१) |
विगुणः | विगुण (१.१) |
परधर्मात्स्वनुष्ठितात् | पर–धर्म (५.१)–सु (अव्ययः)–अनुष्ठित (√अनु-स्था + क्त, ५.१) |
स्वधर्मे | स्वधर्म (७.१) |
निधनं | निधन (१.१) |
श्रेयः | श्रेयस् (१.१) |
परधर्मो | पर–धर्म (१.१) |
भयावहः | भय–आवह (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श्रे | या | न्स्व | ध | र्मो | वि | गु | णः |
प | र | ध | र्मा | त्स्व | नु | ष्ठि | तात् |
स्व | ध | र्मे | नि | ध | नं | श्रे | यः |
प | र | ध | र्मो | भ | या | व | हः |