Summary
In this world there exists no purifier comparabel to knowledge. One who becomes perfect in Yoga finds this, on his own accord, in his Self in course of time.
पदच्छेदः
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न | न (अव्ययः) |
हि | हि (अव्ययः) |
ज्ञानेन | ज्ञान (३.१) |
सदृशं | सदृश (१.१) |
पवित्रमिह | पवित्र (१.१)–इह (अव्ययः) |
विद्यते | विद्यते (√विद् प्र.पु. एक.) |
तत्स्वयं | तद् (२.१)–स्वयम् (अव्ययः) |
योगसंसिद्धः | योग–संसिद्ध (√सम्-सिध् + क्त, १.१) |
कालेनात्मनि | काल (३.१)–आत्मन् (७.१) |
विन्दति | विन्दति (√विद् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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न | हि | ज्ञा | ने | न | स | दृ | शं |
प | वि | त्र | मि | ह | वि | द्य | ते |
त | त्स्व | यं | यो | ग | सं | सि | द्धः |
का | ले | ना | त्म | नि | वि | न्द | ति |