Summary
Whatever may be the form [of the deity] a devotee-whosoever he may be-desires to worship with faith, I assume that form which is firm and is according to [his] faith.
पदच्छेदः
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यो | यद् (१.१) |
यो | यद् (१.१) |
यां | यद् (२.१) |
यां | यद् (२.१) |
तनुं | तनु (२.१) |
भक्तः | भक्त (१.१) |
श्रद्धयार्चितुमिच्छति | श्रद्धा (३.१)–अर्चितुम् (√अर्च् + तुमुन्)–इच्छति (√इष् लट् प्र.पु. एक.) |
तस्य | तद् (६.१) |
तस्याचलां | तद् (६.१)–अचल (२.१) |
श्रद्धां | श्रद्धा (२.१) |
तामेव | तद् (२.१)–एव (अव्ययः) |
विदधाम्यहम् | विदधामि (√वि-धा लट् उ.पु. )–मद् (१.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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यो | यो | यां | यां | त | नुं | भ | क्तः |
श्र | द्ध | या | र्चि | तु | मि | च्छ | ति |
त | स्य | त | स्या | च | लां | श्र | द्धां |
ता | मे | व | वि | द | धा | म्य | हम् |