Summary
Endowed with that faith, he seeks to worship that deity and therefrom receives his desired objects that are ordained by none but Me.
पदच्छेदः
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स | तद् (१.१) |
तया | तद् (३.१) |
श्रद्धया | श्रद्धा (३.१) |
युक्तस्तस्या | युक्त (√युज् + क्त, १.१)–तद् (६.१) |
राधनमीहते | राधन (२.१)–ईहते (√ईह् लट् प्र.पु. एक.) |
लभते | लभते (√लभ् लट् प्र.पु. एक.) |
च | च (अव्ययः) |
ततः | ततस् (अव्ययः) |
कामान्मयैव | काम (२.३)–मद् (३.१)–एव (अव्ययः) |
विहितान्हि | विहित (√वि-धा + क्त, २.३)–हि (अव्ययः) |
तान् | तद् (२.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | त | या | श्र | द्ध | या | यु | क्त |
स्त | स्या | रा | ध | न | मी | ह | ते |
ल | भ | ते | च | त | तः | का | मा |
न्म | यै | व | वि | हि | ता | न्हि | तान् |