Summary
Till the Brahman [is attained], people do return from [each and every] world, O Arjuna ! But there is no rirth for one who has attained Me, O son of Kunti !
पदच्छेदः
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आ | आ (अव्ययः) |
ब्रह्मभुवनाल्लोकाः | ब्रह्मन्–भुवन (५.१)–लोक (१.३) |
पुनरावर्तिनो | पुनरावर्तिन् (६.१) |
ऽर्जुन | अर्जुन (८.१) |
मामुपेत्य | मद् (२.१)–उपेत्य (√उप-इ + ल्यप्) |
तु | तु (अव्ययः) |
कौन्तेय | कौन्तेय (८.१) |
पुनर्जन्म | पुनर्जन्मन् (१.१) |
न | न (अव्ययः) |
विद्यते | विद्यते (√विद् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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आ | ब्र | ह्म | भु | व | ना | ल्लो | काः |
पु | न | रा | व | र्ति | नो | ऽर्जु | न |
मा | मु | पे | त्य | तु | कौ | न्ते | य |
पु | न | र्ज | न्म | न | वि | द्य | ते |