Summary
Having attained Me, the men of great soul who have achieved the supreme perfection, do not get the transient rirth, a store-house of all troubles.
पदच्छेदः
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मामुपेत्य | मद् (२.१)–उपेत्य (√उप-इ + ल्यप्) |
पुनर्जन्म | पुनर्जन्मन् (२.१) |
दुःखालयमशाश्वतम् | दुःख–आलय (२.१)–अशाश्वत (२.१) |
नाप्नुवन्ति | न (अव्ययः)–आप्नुवन्ति (√आप् लट् प्र.पु. बहु.) |
महात्मानः | महात्मन् (१.३) |
संसिद्धिं | संसिद्धि (२.१) |
परमां | परम (२.१) |
गताः | गत (√गम् + क्त, १.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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मा | मु | पे | त्य | पु | न | र्ज | न्म |
दुः | खा | ल | य | म | शा | श्व | तम् |
ना | प्नु | व | न्ति | म | हा | त्मा | नः |
सं | सि | द्धिं | प | र | मां | ग | ताः |