Summary
While the day approaches, all manifestations issue forth from the unmanifest and while the night approaches they dissolve into the same that bears the name 'the unmanifest.'
पदच्छेदः
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अव्यक्ताद्व्यक्तयः | अव्यक्त (५.१)–व्यक्ति (१.३) |
सर्वाः | सर्व (१.३) |
प्रभवन्त्यहरागमे | प्रभवन्ति (√प्र-भू लट् प्र.पु. बहु.)–अहर्–आगम (७.१) |
रात्र्यागमे | रात्रि–आगम (७.१) |
प्रलीयन्ते | प्रलीयन्ते (√प्र-ली लट् प्र.पु. बहु.) |
तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके | तत्र (अव्ययः)–एव (अव्ययः)–अव्यक्त–संज्ञक (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | व्य | क्ता | द्व्य | क्त | यः | स | र्वाः |
प्र | भ | व | न्त्य | ह | रा | ग | मे |
रा | त्र्या | ग | मे | प्र | ली | य | न्ते |
त | त्रै | वा | व्य | क्त | सं | ज्ञ | के |