Summary
Being born and born again, the self same multitude of beings gets dissolved while the night approaches, and issues forth willy-nilly while the day approaches, O son of Prtha !
पदच्छेदः
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भूतग्रामः | भूत–ग्राम (१.१) |
स | तद् (१.१) |
एवायं | एव (अव्ययः)–इदम् (१.१) |
भूत्वा | भूत्वा (√भू + क्त्वा) |
भूत्वा | भूत्वा (√भू + क्त्वा) |
प्रलीयते | प्रलीयते (√प्र-ली लट् प्र.पु. एक.) |
रात्र्यागमे | रात्रि–आगम (७.१) |
ऽवशः | अवश (१.१) |
पार्थ | पार्थ (८.१) |
प्रभवत्यहरागमे | प्रभवति (√प्र-भू लट् प्र.पु. एक.)–अहर्–आगम (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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भू | त | ग्रा | मः | स | ए | वा | यं |
भू | त्वा | भू | त्वा | प्र | ली | य | ते |
रा | त्र्या | ग | मे | ऽव | शः | पा | र्थ |
प्र | भ | व | त्य | ह | रा | ग | मे |