पदच्छेदः
Click to Toggle
पश्यामो | पश्यामः (√दृश् लट् उ.पु. द्वि.) |
मयि | मद् (७.१) |
किं | क (१.१) |
प्रपद्यत | प्रपद्यते (√प्र-पद् प्र.पु. एक.) |
इति | इति (अव्ययः) |
स्थैर्यं | स्थैर्य (१.१) |
मयालम्बितं | मद् (३.१)–आलम्बित (√आ-लम्ब् + क्त, १.१) |
किं | क (२.१) |
मामालपतीत्ययं | मद् (२.१)–आलपति (√आ-लप् लट् प्र.पु. एक.)–इति (अव्ययः)–इदम् (१.१) |
खलु | खलु (अव्ययः) |
शठः | शठ (१.१) |
कोपस्तयाप्याश्रितः | कोप (१.१)–तद् (३.१)–अपि (अव्ययः)–आश्रित (√आ-श्रि + क्त, १.१) |
इत्यन्योन्यविलक्षदृष्टिचतुरे | इति (अव्ययः)–अन्योन्य–विलक्ष–दृष्टि–चतुर (७.१) |
तस्मिन्नवस्थान्तरे | तद् (७.१)–अवस्था–अन्तर (७.१) |
सव्याजं | स (अव्ययः)–व्याज (१.१) |
हसितं | हसित (√हस् + क्त, १.१) |
मया | मद् (३.१) |
धृतिहरो | धृति–हर (१.१) |
बाष्पस्तु | बाष्प (१.१)–तु (अव्ययः) |
मुक्तस्तया | मुक्त (√मुच् + क्त, १.१)–तद् (३.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
---|
प | श्या | मो | म | यि | किं | प्र | प | द्य | त | इ | ति | स्थै | र्यं | म | या | ल | म्बि | तं |
किं | मा | मा | ल | प | ती | त्य | यं | ख | लु | श | ठः | को | प | स्त | या | प्या | श्रि | तः |
इ | त्य | न्यो | न्य | वि | ल | क्ष | दृ | ष्टि | च | तु | रे | त | स्मि | न्न | व | स्था | न्त | रे |
स | व्या | जं | ह | सि | तं | म | या | धृ | ति | ह | रो | बा | ष्प | स्तु | मु | क्त | स्त | या |
म | स | ज | स | त | त | ग |