पदच्छेदः
Click to Toggle
दत्तोऽस्याः | दत्त (√दा + क्त, १.१)–इदम् (६.१) |
प्रणयस्त्वयैव | प्रणय (१.१)–त्वद् (३.१)–एव (अव्ययः) |
भवता | भवत् (३.१) |
चेयं | च (अव्ययः)–इदम् (१.१) |
चिरं | चिरम् (अव्ययः) |
लालिता | लालित (√लालय् + क्त, १.१) |
दैवाद् | दैव (५.१) |
अद्य | अद्य (अव्ययः) |
किल | किल (अव्ययः) |
त्वमेव | त्वद् (१.१)–एव (अव्ययः) |
कृतवान् | कृतवत् (√कृ + क्तवतु, १.१) |
अस्या | इदम् (६.१) |
नवं | नव (२.१) |
विप्रियम् | विप्रिय (२.१) |
मन्युर्दुःसह | मन्यु (१.१)–दुःसह (१.१) |
एष | एतद् (१.१) |
यात्युपशमं | याति (√या लट् प्र.पु. एक.)–उपशम (२.१) |
नो | नो (अव्ययः) |
सान्त्ववादैः | सान्त्व–वाद (१.३) |
स्फुटं | स्फुट (१.१) |
हे | हे (अव्ययः) |
निस्त्रंश | निस्त्रंश (८.१) |
विमुक्तकण्ठकरुणं | विमुक्त (√वि-मुच् + क्त)–कण्ठ–करुण (१.१) |
तावत्सखी | तावत् (अव्ययः)–सखी (१.१) |
रोदितु | रोदितु (√रुद् लोट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
---|
द | त्तो | ऽस्याः | प्र | ण | य | स्त्व | यै | व | भ | व | ता | चे | यं | चि | रं | ला | लि | ता |
दै | वा | द | द्य | कि | ल | त्व | मे | व | कृ | त | वा | न | स्या | न | वं | वि | प्रि | यम् |
म | न्यु | र्दुः | स | ह | ए | ष | या | त्यु | प | श | मं | नो | सा | न्त्व | वा | दैः | स्फु | टं |
हे | नि | स्त्रं | श | वि | मु | क्त | क | ण्ठ | क | रु | णं | ता | व | त्स | खी | रो | दि | तु |
म | स | ज | स | त | त | ग |