पदच्छेदः
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नार्यस्तन्वि | नारी (१.३)–तन्वी (८.१) |
हठाद्धरन्ति | हठ (५.१)–हरन्ति (√हृ लट् प्र.पु. बहु.) |
रमणं | रमण (२.१) |
तिष्ठन्ति | तिष्ठन्ति (√स्था लट् प्र.पु. बहु.) |
नो | नो (अव्ययः) |
वारितास् | वारित (√वारय् + क्त, १.३) |
तत्किं | तद् (२.१)–क (२.१) |
ताम्यसि | ताम्यसि (√तम् लट् म.पु. ) |
किं | क (२.१) |
च | च (अव्ययः) |
रोदिषि | रोदिषि (√रुद् लट् म.पु. ) |
मुधा | मुधा (अव्ययः) |
तासां | तद् (६.३) |
प्रियं | प्रिय (२.१) |
मा | मा (अव्ययः) |
कृथाः | कृथाः (√कृ म.पु. ) |
कान्तः | कान्त (१.१) |
केलिरुचिर्युवा | केलि–रुचि (१.१)–युवन् (१.१) |
सहृदयस्तादृक्पतिः | सहृदय (१.१)–तादृश् (१.१)–पति (१.१) |
कातरे | कातर (८.१) |
किं | क (२.१) |
नो | नो (अव्ययः) |
बर्करकर्करैः | बर्करकर्कर (३.३) |
प्रियशतैराक्रम्य | प्रिय–शत (३.३)–आक्रम्य (√आ-क्रम् + ल्यप्) |
विक्रीयते | विक्रीयते (√वि-क्री प्र.पु. एक.) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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ना | र्य | स्त | न्वि | ह | ठा | द्ध | र | न्ति | र | म | णं | ति | ष्ठ | न्ति | नो | वा | रि | ता |
स्त | त्किं | ता | म्य | सि | किं | च | रो | दि | षि | मु | धा | ता | सां | प्रि | यं | मा | कृ | थाः |
का | न्तः | के | लि | रु | चि | र्यु | वा | स | हृ | द | य | स्ता | दृ | क्प | तिः | का | त | रे |
किं | नो | ब | र्क | र | क | र्क | रैः | प्रि | य | श | तै | रा | क्र | म्य | वि | क्री | य | ते |
म | स | ज | स | त | त | ग |