पदच्छेदः
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इतीरयित्वा | इति (अव्ययः)–ईरयित्वा (√ईरय् + क्त्वा) |
गिरम् | गिर् (२.१) |
आत्तसत्क्रिये | आत्त (√आ-दा + क्त)–सत्क्रिया (७.१) |
गते | गत (√गम् + क्त, ७.१) |
ऽथ | अथ (अव्ययः) |
पत्यौ | पति (७.१) |
वनसंनिवासिनाम् | वन–संनिवासिन् (६.३) |
प्रविश्य | प्रविश्य (√प्र-विश् + ल्यप्) |
कृष्णा | कृष्णा (१.१) |
सदनं | सदन (२.१) |
महीभुजा | महीभुज् (३.१) |
तद् | तद् (२.१) |
आचचक्षे | आचचक्षे (√आ-चक्ष् लिट् प्र.पु. एक.) |
ऽनुजसन्निधौ | अनुज–संनिधि (७.१) |
वचः | वचस् (२.१) |
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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इ | ती | र | यि | त्वा | गि | र | मा | त्त | स | त्क्रि | ये |
ग | ते | ऽथ | प | त्यौ | व | न | सं | नि | वा | सि | नाम् |
प्र | वि | श्य | कृ | ष्णा | स | द | नं | म | ही | भु | जा |
त | दा | च | च | क्षे | ऽनु | ज | स | न्नि | धौ | व | चः |
ज | त | ज | र |