अथोच्चकैर् | अथ (अव्ययः)–उच्चकैस् (अव्ययः) |
आसनतः | आसन (५.१) |
परार्ध्याद् | परार्ध्य (५.१) |
उद्यन् | उद्यत् (√उत्-इ + शतृ, १.१) |
स | तद् (१.१) |
धूतारुणवल्कलाग्रः | धूत (√धू + क्त)–अरुण–वल्कल–अग्र (१.१) |
रराज | रराज (√राज् लिट् प्र.पु. एक.) |
कीर्णाकपिशांशुजालः | कीर्ण (√कृ + क्त)–आ (अव्ययः)–कपिश–अंशु–जाल (१.१) |
शृङ्गात् | शृङ्ग (५.१) |
सुमेरोर् | सुमेरु (६.१) |
इव | इव (अव्ययः) |
तिग्मरश्मिः | तिग्मरश्मि (१.१) |
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | थो | च्च | कै | रा | स | न | तः | प | रा | र्ध्या |
दु | द्य | न्स | धू | ता | रु | ण | व | ल्क | ला | ग्रः |
र | रा | ज | की | र्णा | क | पि | शां | शु | जा | लः |
शृ | ङ्गा | त्सु | मे | रो | रि | व | ति | ग्म | र | श्मिः |