पदच्छेदः
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प्रणिधाय | प्रणिधाय (√प्रणि-धा + ल्यप्) |
चित्तम् | चित्त (२.१) |
अथ | अथ (अव्ययः) |
भक्ततया | भक्त–ता (३.१) |
विदिते | विदित (√विद् + क्त, ७.१) |
ऽप्य् | अपि (अव्ययः) |
अपूर्व | अपूर्व (१.१) |
इव | इव (अव्ययः) |
तत्र | तत्र (अव्ययः) |
हरिः | हरि (१.१) |
उपलब्धुम् | उपलब्धुम् (√उप-लभ् + तुमुन्) |
अस्य | इदम् (६.१) |
नियमस्थिरतां | नियम–स्थिर–ता (२.१) |
सुरसुन्दरीर् | सुरसुन्दरी (२.३) |
इति | इति (अव्ययः) |
वचो | वचस् (२.१) |
ऽभिदधे | अभिदधे (√अभि-धा लिट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
प्रमिताक्षरा [१२: सजसस]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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प्र | णि | धा | य | चि | त्त | म | थ | भ | क्त | त | या |
वि | दि | ते | ऽप्य | पू | र्व | इ | व | त | त्र | ह | रिः |
उ | प | ल | ब्धु | म | स्य | नि | य | म | स्थि | र | तां |
सु | र | सु | न्द | री | रि | ति | व | चो | ऽभि | द | धे |
स | ज | स | स |