वल्लभदेवः
यथेदं शुभमीक्ष्यते तथा निश्चितं मे च मुन्दरं त्वामाकाशे बलाकाः सेविष्यन्ते श्रयिष्यन्ते । किमितीत्याह । हितो वातो यथा त्वां मन्दं मन्दं प्रेरयति यथा चायं चातको मयूरो मधुरं कूजति । वामो वामपार्श्वस्थो वल्गुवादी वा। तोयगृधुर्जलमभिलाषुकः । वार्षिकलिङ्गदर्शनाद्बलाका अप्यायास्यन्तीति प्रावृड्धर्मोऽयम् । कीदृक्ष्यस्ताः । गर्भाधानेन स्थिरः परिचयो यासां ताः । मेघगर्जितेन हि ताः सगर्भा भवन्तीति वार्त्ता । आबद्धमाला रचितपङ्क्त्यः । मन्दं मन्दमित्याधिक्ये द्वित्वम् ॥
पदच्छेदः
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मन्दं | मन्द (२.१) |
मन्दं | मन्द (२.१) |
नुदति | नुदति (√नुद् लट् प्र.पु. एक.) |
पवनश्चानुकूलो | पवन (१.१)–च (अव्ययः)–अनुकूल (१.१) |
यथा | यथा (अव्ययः) |
त्वां | त्वद् (२.१) |
वामश्चायं | वाम (१.१)–च (अव्ययः)–इदम् (१.१) |
नदति | नदति (√नद् लट् प्र.पु. एक.) |
मधुरं | मधुर (२.१) |
चातकस्ते | चातक (१.१)–त्वद् (६.१) |
सगन्धः | सगन्ध (१.१) |
गर्भाधानक्षणपरिचयान् | गर्भाधान–क्षण–परिचय (५.१) |
नूनम् | नूनम् (अव्ययः) |
आबद्धमालाः | आबद्ध (√आ-बन्ध् + क्त)–माला (१.३) |
सेविष्यन्ते | सेविष्यन्ते (√सेव् लृट् प्र.पु. बहु.) |
नयनसुभगं | नयन–सुभग (२.१) |
खे | ख (७.१) |
भवन्तं | भवत् (२.१) |
बलाकाः | बलाका (१.३) |
छन्दः
मन्दाक्रान्ता [१७: मभनततगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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म | न्दं | म | न्दं | नु | द | ति | प | व | न | श्चा | नु | कू | लो | य | था | त्वां |
वा | म | श्चा | यं | न | द | ति | म | धु | रं | चा | त | क | स्तो | य | गृ | ध्नुः |
ग | र्भा | धा | न | स्थि | र | प | रि | च | या | नू | न | मा | ब | द्ध | मा | लाः |
से | वि | ष्य | न्ते | न | य | न | सु | भ | गं | खे | भ | व | न्तं | ब | ला | काः |
म | भ | न | त | त | ग | ग |