वल्लभदेवः
ततोऽवन्तीनाम जनपदानासाद्य पूर्वोद्दिष्टां पूर्वोक्तां नगरीमुज्जयिनीमनुसर गच्छ । कीदृशांस्तान् । उदयनकथा बृहत्कथावत्सराजवृत्तान्तः । तत्र कोविदाः प्रवीणा ग्रामवृद्धाश्चिरन्तना येषु । तस्य तत्र वर्णनीयत्वात् । पुरीं कीदृशीम् । श्रिया ऋद्ध्या विशालामनल्पां विविधाश्च शाला यस्यास्ताम् । यां चोत्पेक्षामहे । दिव एकं भास्वरं खपदमिव । स्वर्गैकदेशस्य कस्तवागम इत्याह । स्वर्गिणां पुण्यवतं सुचरितफले सुकृतफले उपभुक्तत्वादल्पीभूते किंचिच्छिष्टे सति गां गतानां भुवं प्राप्तानां पुण्यशेषेणाहतं भुवमानीतं मूर्तिमत्स्वर्गखण्डमिवेत्यर्थः । अवन्तीनां निवासो जनपदोऽवन्तयः ॥
पदच्छेदः
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प्राप्यावन्तीन् | प्राप्य (√प्र-आप् + ल्यप्)–अवन्ति (२.३) |
उदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान् | उदयन–कथा–कोविद–ग्राम–वृद्ध (२.३) |
पूर्वोद्दिष्टाम् | पूर्व–उद्दिष्ट (√उत्-दिश् + क्त, २.१) |
उपसर | उपसर (√उप-सृ लोट् म.पु. ) |
पुरीं | पुरी (२.१) |
श्रीविशालां | श्री–विशाल (२.१) |
विशालाम् | विशाला (२.१) |
स्वल्पीभूते | स्वल्पीभूत (√स्वल्पी-भू + क्त, ७.१) |
सुचरितफले | सु (अव्ययः)–चरित–फल (७.१) |
स्वर्गिणां | स्वर्गिन् (६.३) |
गां | गो (२.१) |
गतानां | गत (√गम् + क्त, ६.३) |
शेषैः | शेष (३.३) |
पुण्यैर् | पुण्य (३.३) |
हृतम् | हृत (√हृ + क्त, १.१) |
इव | इव (अव्ययः) |
दिवः | दिव् (५.१) |
कान्तिमत् | कान्तिमत् (१.१) |
खण्डम् | खण्ड (१.१) |
एकम् | एक (१.१) |
छन्दः
मन्दाक्रान्ता [१७: मभनततगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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प्रा | प्या | व | न्ती | नु | द | य | न | क | था | को | वि | द | ग्रा | म | वृ | द्धा |
न्पू | र्वो | द्दि | ष्टा | म | नु | स | र | पु | रीं | श्री | वि | शा | लां | वि | शा | लाम् |
स्व | ल्पी | भू | ते | सु | च | रि | त | फ | ले | स्व | र्गि | णां | गां | ग | ता | नां |
शे | षैः | पु | ण्यै | र्हृ | त | मि | व | दि | वः | का | न्ति | म | त्ख | ण्ड | मे | कम् |
म | भ | न | त | त | ग | ग |