वल्लभदेवः
अस्या उज्जयिन्याः सौधेष्वध्वखिन्नानन्तरात्मा निशामतिवाह्य चण्डेश्वरम्य शंभोर्धामायतनं याया गच्छेः । कीदृशः । जालोद्गीर्णैर्गवाक्षविवरनिर्गतैरङ्गनामूर्धजोपस्कारधूमैरुपचितवपुः पीवरतनुः । धूमप्रायत्वादभ्राणाम् । तथा गृहमयूरैः सुहृत्स्नेहाद्दत्तो वितीर्णो नृत्तमेवोपहारो बलिर्यस्य । ते हि त्वामालोक्य सुहृत्स्नेहान्नृत्यन्ति । कीदृशेषु हर्म्येषु । कुसुमैरूपकारपुष्पैः सुगन्धिषु । तथा ललितानां सविलासानां वनितानां पादानामलक्तकेनाङ्कितेषु चिह्नितेषु । त्वं कीदृशः । गणैः प्रीत्यालोक्यमानः । कुतः । भर्तुः शम्भोः कण्ठच्छविर्गलनिभकान्तिरित्यतो हेतोः । कीदृशं धाम । पुण्यं पवित्रम् । तथा गन्धवत्याख्याया नद्या मरुद्भिर्वातैर्धूतोद्यानमुल्लसितोपवनम् । कीदृशैः । कुवलयरजोगन्धिभिरुत्पलरेणुसौरभं विद्यते येषां तैः । तथा तोयक्रीडायां जलकेलौ निरताः सक्ता या युवतयस्तासां स्नानेन तिक्तैः कटुकैः । अङ्गरागसंक्रमणात् ॥
पदच्छेदः
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भर्तुः | भर्तृ (६.१) |
कण्ठच्छविर् | कण्ठ–छवि (१.१) |
इति | इति (अव्ययः) |
गणैः | गण (३.३) |
सादरं | सादर (२.१) |
वीक्ष्यमाणः | वीक्ष्यमाण (√वि-ईक्ष् + शानच्, १.१) |
पुण्यं | पुण्य (२.१) |
यायास् | यायाः (√या विधिलिङ् म.पु. ) |
त्रिभुवनगुरोर् | त्रिभुवन–गुरु (६.१) |
धाम | धामन् (२.१) |
चण्डीश्वरस्य | चण्डीश्वर (६.१) |
धूतोद्यानं | धूत (√धू + क्त)–उद्यान (२.१) |
कुवलयरजोगन्धिभिर् | कुवलय–रजस्–गन्धि (३.३) |
गन्धवत्यास् | गन्धवती (६.१) |
तोयक्रीडानिरतयुवतिस्नानतिक्तैर् | तोय–क्रीडा–निरत (√नि-रम् + क्त)–युवति–स्नान–तिक्त (३.३) |
मरुद्भिः | मरुत् (३.३) |
छन्दः
मन्दाक्रान्ता [१७: मभनततगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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भ | र्तुः | क | ण्ठ | च्छ | वि | रि | ति | ग | णैः | सा | द | रं | दृ | श्य | मा | णः |
पु | ण्यं | या | या | स्त्रि | भु | व | न | गु | रो | र्धा | म | च | ण्डे | श्व | र | स्य |
धू | तो | द्या | नं | कु | व | ल | य | र | जो | ग | न्धि | भि | र्ग | न्ध | व | त्या |
स्तो | य | क्री | डा | नि | र | त | यु | व | ति | स्ना | न | ति | क्तै | र्म | रु | द्भिः |
म | भ | न | त | त | ग | ग |