वल्लभदेवः
तत्रोज्जयिन्यामभिसारिकाणां सौदामिन्या तडिता राजमार्गं दर्शय प्रकाशय। यतो नक्तं रात्रौ प्रियतमवसतिं व्रजन्तीनाम् । अत एवातिघनत्वात्सूच्या भेद्यस्तमोभी रद्धालोकेऽवष्टब्धप्रकाशे पथि । कीदृश्या तया । कनकनिकषवत्सुवर्णघर्षणवत्स्निग्धयारूक्षया । एवं च कृत्वा तोयोत्सर्गार्थं स्तनितेन गर्जितडम्बरेण मुखरः सशब्दो मा भूः । यतस्ता योषिद्भावात्कातराम्बग्नवः[अस्पष्टं मुद्रणम्] ॥
पदच्छेदः
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गच्छन्तीनां | गच्छत् (√गम् + शतृ, ६.३) |
रमणवसतिं | रमण–वसति (२.१) |
योषितां | योषित् (६.३) |
तत्र | तत्र (अव्ययः) |
नक्तं | नक्त (२.१) |
रुद्धालोके | रुद्ध (√रुध् + क्त)–आलोक (७.१) |
नरपतिपथे | नरपति–पथ (७.१) |
सूचिभेद्यैस् | सूचि–भेद्य (√भिद् + कृत्, ३.३) |
तमोभिः | तमस् (३.३) |
सौदामन्या | सौदामनी (३.१) |
कनकनिकषस्निग्धया | कनक–निकष–स्निग्ध (३.१) |
दर्शयोर्वीं | दर्शय (√दर्शय् लोट् म.पु. )–उर्वी (२.१) |
तोयोत्सर्गस्तनितमुखरो | तोय–उत्सर्ग–स्तनित–मुखर (१.१) |
मा | मा (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
भूर् | भूः (√भू म.पु. ) |
विक्लवास्ताः | विक्लव (१.३)–तद् (१.३) |
छन्दः
मन्दाक्रान्ता [१७: मभनततगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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ग | च्छ | न्ती | नां | र | म | ण | व | स | तिं | यो | षि | तां | त | त्र | न | क्तं |
रु | द्धा | लो | के | न | र | प | ति | प | थे | सू | चि | भे | द्यै | स्त | मो | भिः |
सौ | दा | मि | न्या | क | न | क | नि | क | ष | स्नि | ग्ध | या | द | र्श | यो | र्वीं |
तो | यो | त्स | र्ग | स्त | नि | त | मु | ख | रो | मा | स्म | भू | र्वि | क्ल | वा | स्ताः |
म | भ | न | त | त | ग | ग |