वल्लभदेवः
तां पूर्वोक्तां रात्रिं कस्यामपि भवनवलभौ गृहोपरिपुरे नीत्वातिवाह्य ततः मूर्योदये भूयोऽपि भवान्मार्गमवशिष्टं वाहयेदुल्लङ्घयेत् । यस्मान्मित्राणां यैरर्थकृत्यं प्रयोजनमभ्युपेतमूरीकृतं शिरसाङ्गीकृतं ते न खलु मन्दायन्ते नैवालसा भवन्ति । कीदृश्यां वलभौ । सुप्ताः पारावताः कपोतविशेषाः यत्र । ते हि कण्ठरुतश्रवणार्थं नागरकैर्गृहे धार्यन्ते । त्वं कीदृशः । चिरं विलसनात्स्विन्नं श्रान्तं विद्युदेव कलत्रं भार्या यस्य सः । अत एव वलभौ विश्रमणम् । अमन्दो मन्दो भवति मन्दायते । भृशादित्वात्क्यङ् । अर्थश्चासौ कृत्यमर्थकृत्यम् । अर्थः प्रयोजनम् । अवश्यकार्यत्वाच्चास्य कृत्यत्वम् ॥
पदच्छेदः
Click to Toggle
तां | तद् (२.१) |
कस्यांचिद् | कश्चित् (७.१) |
भवनवलभौ | भवन–वलभि (७.१) |
सुप्तपारावतायां | सुप्त (√स्वप् + क्त)–पारावत (७.१) |
नीत्वा | नीत्वा (√नी + क्त्वा) |
रात्रिं | रात्रि (२.१) |
चिरविलसनात् | चिर–विलसन (५.१) |
खिन्नविद्युत्कलत्रः | खिन्न (√खिद् + क्त)–विद्युत्–कलत्र (१.१) |
दृष्टे | दृष्ट (√दृश् + क्त, ७.१) |
सूर्ये | सूर्य (७.१) |
पुनरपि | पुनर् (अव्ययः)–अपि (अव्ययः) |
भवान् | भवत् (१.१) |
वाहयेदध्वशेषं | वाहयेत् (√वाहय् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–अध्वन्–शेष (२.१) |
मन्दायन्ते | मन्दायन्ते (√मन्दाय् लट् प्र.पु. बहु.) |
न | न (अव्ययः) |
खलु | खलु (अव्ययः) |
सुहृदाम् | सुहृद् (६.३) |
अभ्युपेतार्थकृत्याः | अभ्युपेत (√अभ्युप-इ + क्त, १.१)–अर्थ–कृत्य (१.३) |
छन्दः
मन्दाक्रान्ता [१७: मभनततगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
---|
तां | क | स्यां | चि | द्भ | व | न | व | ल | भौ | सु | प्त | पा | रा | व | ता | यां |
नी | त्वा | रा | त्रिं | चि | र | वि | ल | स | ना | त्खि | न्न | वि | द्यु | त्क | ल | त्रः |
दृ | ष्टे | सू | र्ये | पु | न | र | पि | भ | वा | न्वा | ह | ये | द | ध्व | शे | षं |
म | न्दा | य | न्ते | न | ख | लु | सु | हृ | दा | म | भ्यु | पे | ता | र्थ | कृ | त्याः |
म | भ | न | त | त | ग | ग |