वल्लभदेवः
पश्चादनन्तरं पावकेः स्कन्दस्य तं वाहनं मयूरं गर्जितैर्नर्तयेथा लास्यं कारयेथाः । जलदरवनिशमनाद्धि बर्हिणो नृत्यन्ति । तमित्युक्तम् । कं तमित्याह । यस्य गलितं भ्रष्टं बर्हं पक्षं गौरी पुत्रप्रीत्या कर्णे करोत्यवतंसीकुरुते । तच्च कुवलयपदप्राप्युत्पलस्थानारूढम् । ज्योतिर्लेखावलयं तेजोराजिमण्डलं विद्यते यस्य तत्तथोक्तम् । हरशशिरुचा शिवशिरश्चन्द्रश्चन्द्रिकया धौतापाङ्गं क्षालितनेत्रान्तम् । गर्जितैः कीदृशैः । अद्रिग्रहणगुरुभिः पर्वतप्राप्तिपीवरैः । अद्रिग्रहणशब्दे न कर्तृपष्ठीसमासः । नर्तयेथा इति न पादमीत्यादिनात्मनेपदम् ॥
पदच्छेदः
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ज्योतिर्लेखावलयि | ज्योतिस्–लेखा–वलयिन् (१.१) |
गलितं | गलित (√गल् + क्त, १.१) |
यस्य | यद् (६.१) |
बर्हं | बर्ह (१.१) |
भवानी | भवानी (१.१) |
पुत्रप्रेम्णा | पुत्र–प्रेमन् (३.१) |
कुवलयदलप्रापि | कुवलय–दल–प्रापिन् (२.१) |
कर्णे | कर्ण (७.१) |
करोति | करोति (√कृ लट् प्र.पु. एक.) |
धौतापाङ्गं | धौत (√धाव् + क्त)–अपाङ्ग (२.१) |
हरशशिरुचा | हर–शशिन्–रुच् (३.१) |
पावकेस् | पावकि (६.१) |
तं | तद् (२.१) |
मयूरं | मयूर (२.१) |
पश्चाद् | पश्चात् (अव्ययः) |
अद्रिग्रहणगुरुभिर् | अद्रि–ग्रहण–गुरु (३.३) |
गर्जितैर् | गर्जित (३.३) |
नर्तयेथाः | नर्तयेथाः (√नर्तय् विधिलिङ् म.पु. ) |
छन्दः
मन्दाक्रान्ता [१७: मभनततगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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ज्यो | ति | र्ले | खा | व | ल | यि | ग | लि | तं | य | स्य | ब | र्हं | भ | वा | नी |
पु | त्र | प्री | त्या | कु | व | ल | य | प | द | प्रा | पि | क | र्णे | क | रो | ति |
धौ | ता | पा | ङ्गं | ह | र | श | शि | रु | चा | पा | व | के | स्तं | म | यू | रं |
प | श्चा | द | द्रि | ग्र | ह | ण | गु | रु | भि | र्ग | र्जि | तै | र्न | र्त | ये | थाः |
म | भ | न | त | त | ग | ग |