पदच्छेदः
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हर्तुर् | हर्तृ (६.१) |
याति | याति (√या लट् प्र.पु. एक.) |
न | न (अव्ययः) |
गोचरं | गोचर (१.१) |
किम् | क (१.१) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
शं | शम् (अव्ययः) |
पुष्णाति | पुष्णाति (√पुष् लट् प्र.पु. एक.) |
यत् | यद् (१.१) |
सर्वदा | सर्वदा (अव्ययः) |
ऽप्यर्थिभ्यः | अपि (अव्ययः)–अर्थिन् (४.३) |
प्रतिपाद्यमानम् | प्रतिपाद्यमान (√प्रति-पादय् + शानच्, १.१) |
अनिशं | अनिशम् (अव्ययः) |
प्राप्नोति | प्राप्नोति (√प्र-आप् लट् प्र.पु. एक.) |
वृद्धिं | वृद्धि (२.१) |
पराम् | पर (२.१) |
कल्पान्तेष्वपि | कल्प–अन्त (७.३)–अपि (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
प्रयाति | प्रयाति (√प्र-या लट् प्र.पु. एक.) |
निधनं | निधन (२.१) |
विद्याख्यम् | विद्या–आख्या (१.१) |
अन्तर्धनं | अन्तर् (अव्ययः)–धन (१.१) |
येषां | यद् (६.३) |
तान् | तद् (२.३) |
प्रति | प्रति (अव्ययः) |
मानम् | मान (२.१) |
उझत | उझत (√उझ् लोट् म.पु. द्वि.) |
नृपाः | नृप (८.३) |
कस् | क (१.१) |
तैः | तद् (३.३) |
सह | सह (अव्ययः) |
स्पर्धते | स्पर्धते (√स्पृध् लट् प्र.पु. एक.) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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ह | र्तु | र्या | ति | न | गो | च | रं | कि | म | पि | शं | पु | ष्णा | ति | य | त्स | र्व | दा |
ऽप्य | र्थि | भ्यः | प्र | ति | पा | द्य | मा | न | म | नि | शं | प्रा | प्नो | ति | वृ | द्धिं | प | राम् |
क | ल्पा | न्ते | ष्व | पि | न | प्र | या | ति | नि | ध | नं | वि | द्या | ख्य | म | न्त | र्ध | नं |
ये | षां | ता | न्प्र | ति | मा | न | मु | ज्झ | त | नृ | पाः | क | स्तैः | स | ह | स्प | र्ध | ते |
म | स | ज | स | त | त | ग |