पदच्छेदः
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रे | रे (अव्ययः) |
रे | रे (अव्ययः) |
चातक | चातक (८.१) |
सावधानमनसा | स (अव्ययः)–अवधान–मनस् (३.१) |
मित्र | मित्र (८.१) |
क्षणं | क्षण (२.१) |
श्रूयताम् | श्रूयताम् (√श्रु प्र.पु. एक.) |
अम्भोदा | अम्भोद (१.३) |
बहवो | बहु (१.३) |
वसन्ति | वसन्ति (√वस् लट् प्र.पु. बहु.) |
गगने | गगन (७.१) |
सर्वे | सर्व (१.३) |
ऽपि | अपि (अव्ययः) |
नैतादृशाः | न (अव्ययः)–एतादृश (१.३) |
केचिद् | कश्चित् (१.३) |
वृष्टिभिर् | वृष्टि (३.३) |
आर्द्रयन्ति | आर्द्रयन्ति (√आर्द्रय् लट् प्र.पु. बहु.) |
वसुधां | वसुधा (२.१) |
गर्जन्ति | गर्जन्ति (√गर्ज् लट् प्र.पु. बहु.) |
केचिद् | कश्चित् (१.३) |
वृथा | वृथा (अव्ययः) |
यं | यद् (२.१) |
यं | यद् (२.१) |
पश्यसि | पश्यसि (√पश् लट् म.पु. ) |
तस्य | तद् (६.१) |
तस्य | तद् (६.१) |
पुरतो | पुरतस् (अव्ययः) |
मा | मा (अव्ययः) |
ब्रूहि | ब्रूहि (√ब्रू लोट् म.पु. ) |
दीनं | दीन (२.१) |
वचः | वचस् (२.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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रे | रे | चा | त | क | सा | व | धा | न | म | न | सा | मि | त्र | क्ष | णं | श्रू | य | ता |
म | म्भो | दा | ब | ह | वो | व | स | न्ति | ग | ग | ने | स | र्वे | ऽपि | नै | ता | दृ | शाः |
के | चि | द्वृ | ष्टि | भि | रा | र्द्र | य | न्ति | व | सु | धां | ग | र्ज | न्ति | के | चि | द्वृ | था |
यं | यं | प | श्य | सि | त | स्य | त | स्य | पु | र | तो | मा | ब्रू | हि | दी | नं | व | चः |
म | स | ज | स | त | त | ग |