पदच्छेदः
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क्षीरेणात्मगतोदकाय | क्षीर (३.१)–आत्मन्–गत (√गम् + क्त)–उदक (४.१) |
हि | हि (अव्ययः) |
गुणा | गुण (१.३) |
दत्ता | दत्त (√दा + क्त, १.१) |
पुरा | पुरा (अव्ययः) |
ते | त्वद् (४.१) |
ऽखिला | अखिल (१.१) |
क्षीरोत्तापम् | क्षीर–उत्ताप (२.१) |
अवेक्ष्य | अवेक्ष्य (√अव-ईक्ष् + ल्यप्) |
तेन | तद् (३.१) |
पयसा | पयस् (३.१) |
स्वात्मा | स्व–आत्मन् (१.१) |
कृशानौ | कृशानु (७.१) |
हुतः | हुत (√हु + क्त, १.१) |
गन्तुं | गन्तुम् (√गम् + तुमुन्) |
पावकम् | पावक (२.१) |
उन्मनस् | उन्मनस् (१.१) |
तद् | तद् (१.१) |
अभवद् | अभवत् (√भू लङ् प्र.पु. एक.) |
दृष्ट्वा | दृष्ट्वा (√दृश् + क्त्वा) |
तु | तु (अव्ययः) |
मित्रापदं | मित्र–आपद् (२.१) |
युक्तं | युक्त (√युज् + क्त, १.१) |
तेन | तद् (३.१) |
जलेन | जल (३.१) |
शाम्यति | शाम्यति (√शम् लट् प्र.पु. एक.) |
सतां | सत् (६.३) |
मैत्री | मैत्री (१.१) |
पुनस् | पुनर् (अव्ययः) |
त्व् | तु (अव्ययः) |
ईदृशी | ईदृश (१.१) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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क्षी | रे | णा | त्म | ग | तो | द | का | य | हि | गु | णा | द | त्ता | पु | रा | ते | ऽखि | ला |
क्षी | रो | त्ता | प | म | वे | क्ष्य | ते | न | प | य | सा | स्वा | त्मा | कृ | शा | नौ | हु | तः |
ग | न्तुं | पा | व | क | मु | न्म | न | स्त | द | भ | व | द्दृ | ष्ट्वा | तु | मि | त्रा | प | दं |
यु | क्तं | ते | न | ज | ले | न | शा | म्य | ति | स | तां | मै | त्री | पु | न | स्त्वी | दृ | शी |
म | स | ज | स | त | त | ग |