पदच्छेदः
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ब्रह्मज्ञानविवेकनिर्मलधियः | ब्रह्मन्–ज्ञान–विवेक–निर्मल–धी (१.३) |
कुर्वन्त्य् | कुर्वन्ति (√कृ लट् प्र.पु. बहु.) |
अहो | अहो (अव्ययः) |
दुष्करं | दुष्कर (२.१) |
यन्मुञ्चन्त्युपभोगभाञ्ज्यपि | यद् (२.१)–मुञ्चन्ति (√मुच् लट् प्र.पु. बहु.)–उपभोग–भाज् (२.३)–अपि (अव्ययः) |
धनान्येकान्ततो | धन (२.३)–एकान्त (५.१) |
निःस्पृहाः | निःस्पृह (१.३) |
सम्प्राप्तान् | सम्प्राप्त (√सम्प्र-आप् + क्त, २.३) |
न | न (अव्ययः) |
पुरा | पुरा (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
सम्प्रति | सम्प्रति (अव्ययः) |
न | न (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
प्राप्तौ | प्राप्ति (७.१) |
दृढप्रत्ययान् | दृढ–प्रत्यय (२.३) |
वाञ्छामात्रपरिग्रहान् | वाञ्छा–मात्र–परिग्रह (२.३) |
अपि | अपि (अव्ययः) |
परं | परम् (अव्ययः) |
त्यक्तुं | त्यक्तुम् (√त्यज् + तुमुन्) |
न | न (अव्ययः) |
शक्ता | शक्त (√शक् + क्त, १.३) |
वयम् | मद् (१.३) |
छन्दः
शार्दूलविक्रीडितम् [१९: मसजसततग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ | १८ | १९ |
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ब्र | ह्म | ज्ञा | न | वि | वे | क | नि | र्म | ल | धि | यः | कु | र्व | न्त्य | हो | दु | ष्क | रं |
य | न्मु | ञ्च | न्त्यु | प | भो | ग | भा | ञ्ज्य | पि | ध | ना | न्ये | का | न्त | तो | निः | स्पृ | हाः |
स | म्प्रा | ता | न्न | पु | रा | न | स | म्प्र | ति | न | च | प्रा | प्तौ | दृ | ढ | प्र | त्य | या |
न्वा | ञ्छा | मा | त्र | प | रि | ग्र | हा | न | पि | प | रं | त्य | क्तुं | न | श | क्ता | व | यम् |
म | स | ज | स | त | त | ग |