पदच्छेदः
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तृषा | तृष् (३.१) |
शुष्यत्य् | शुष्यत् (√शुष् + शतृ, ७.१) |
आस्ये | आस्य (७.१) |
पिबति | पिबति (√पा लट् प्र.पु. एक.) |
सलिलं | सलिल (२.१) |
शीतमधुरं | शीत–मधुर (२.१) |
क्षुधार्तः | क्षुधा–आर्त (१.१) |
शाल्यन्नं | शाल्यन्न (२.१) |
कवलयति | कवलयति (√कवलय् लट् प्र.पु. एक.) |
मांसादिकलितम् | मांस–आदि–कलित (√कलय् + क्त, २.१) |
प्रदीप्ते | प्रदीप्त (√प्र-दीप् + क्त, ७.१) |
कामाग्नौ | काम–अग्नि (७.१) |
सुदृढतरम् | सु (अव्ययः)–दृढतर (२.१) |
आलिङ्गति | आलिङ्गति (√आ-लिङ्ग् लट् प्र.पु. एक.) |
वधूं | वधू (२.१) |
प्रतीकारं | प्रतीकार (२.१) |
व्याधः | व्याध (१.१) |
सुखम् | सुख (२.१) |
इति | इति (अव्ययः) |
विपर्यस्यति | विपर्यस्यति (√विपरि-अस् लट् प्र.पु. एक.) |
जनः | जन (१.१) |
छन्दः
शिखरिणी [१७: यमनसभलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ | १६ | १७ |
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तृ | षा | शु | ष्य | त्या | स्ये | पि | ब | ति | स | लि | लं | शी | त | म | धु | रं |
क्षु | धा | र्तः | शा | ल्य | न्नं | क | व | ल | य | ति | मां | सा | दि | क | लि | तम् |
प्र | दी | प्ते | का | मा | ग्नौ | सु | दृ | ढ | त | र | मा | लि | ङ्ग | ति | व | धूं |
प्र | ती | का | रं | व्या | धः | सु | ख | मि | ति | वि | प | र्य | स्य | ति | ज | नः |
य | म | न | स | भ | ल | ग |