Summary
Revibrating in both the sky and the earth, the tumultuous sound shattered the hearts of Dhrtarastra's men.
पदच्छेदः
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स | तद् (१.१) |
घोषो | घोष (१.१) |
धार्तराष्ट्राणां | धार्तराष्ट्र (६.३) |
हृदयानि | हृदय (२.३) |
व्यदारयत् | व्यदारयत् (√वि-दारय् लङ् प्र.पु. एक.) |
नभश्च | नभस् (२.१)–च (अव्ययः) |
पृथिवीं | पृथिवी (२.१) |
चैव | च (अव्ययः)–एव (अव्ययः) |
तुमुलो | तुमुल (१.१) |
व्यनुनादयन् | व्यनुनादयत् (√व्यनु-नादय् + शतृ, १.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | घो | षो | धा | र्त | रा | ष्ट्रा | णां |
हृ | द | या | नि | व्य | दा | र | यत् |
न | भ | श्च | पृ | थि | वीं | चै | व |
तु | मु | लो | व्य | नु | ना | द | यन् |