Summary
I may scrutinize those who are ready to fight, who have assled here and are eager to achieve in the battle, what is dear to the evil-minded son of Dhrtarastra.
पदच्छेदः
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यावदेतान्निरीक्षे | यावत् (अव्ययः)–एतद् (२.३)–निरीक्षे (√निः-ईक्ष् लट् उ.पु. ) |
ऽहं | मद् (१.१) |
योद्धुकामानवस्थितान् | योद्धु–काम (२.३)–अवस्थित (√अव-स्था + क्त, २.३) |
कैर्मया | क (३.३)–मद् (३.१) |
सह | सह (अव्ययः) |
योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे | योद्धव्य (√युध् + कृत्, १.१)–इदम् (७.१)–रण–समुद्यम (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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या | व | दे | ता | न्नि | री | क्षे | ऽहं |
यो | द्धु | का | मा | न | व | स्थि | तान् |
कै | र्म | या | स | ह | यो | द्ध | व्य |
म | स्मि | न्र | ण | स | मु | द्य | मे |