Summary
Shivering and horripilation arise in my body; the Gandiva (the bow) slips from my hand and my skin also burns all over.
पदच्छेदः
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कृपया | कृपा (३.१) |
परयाविष्टो | पर (३.१)–आविष्ट (√आ-विश् + क्त, १.१) |
विषीदन्निदमब्रवीत् | विषीदत् (√वि-सद् + शतृ, १.१)–इदम् (२.१)–अब्रवीत् (√ब्रू लङ् प्र.पु. एक.) |
दृष्ट्वेमान्स्वजनान्कृष्ण | दृष्ट्वा (√दृश् + क्त्वा)–इदम् (२.३)–स्व–जन (२.३)–कृष्ण (८.१) |
युयुत्सून्समवस्थितान् | युयुत्सु (२.३)–समवस्थित (√समव-स्था + क्त, २.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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कृ | प | या | प | र | या | वि | ष्टो |
वि | षी | द | न्नि | द | म | ब्र | वीत् |
दृ | ष्ट्वे | मा | न्स्व | ज | ना | न्कृ | ष्ण |
यु | यु | त्सू | न्स | म | व | स्थि | तान् |