Summary
O Govinda! Of what use in the kingdom to us? Of what use are the pleasures [thereof] and the life even?
पदच्छेदः
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निमित्तानि | निमित्त (२.३) |
च | च (अव्ययः) |
पश्यामि | पश्यामि (√पश् लट् उ.पु. ) |
विपरीतानि | विपरीत (२.३) |
केशव | केशव (८.१) |
न | न (अव्ययः) |
च | च (अव्ययः) |
श्रेयो | श्रेयस् (२.१) |
ऽनुपश्यामि | अनुपश्यामि (√अनु-पश् लट् उ.पु. ) |
हत्वा | हत्वा (√हन् + क्त्वा) |
स्वजनमाहवे | स्व–जन (२.१)–आहव (७.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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नि | मि | त्ता | नि | च | प | श्या | मि |
वि | प | री | ता | नि | के | श | व |
न | च | श्रे | यो | ऽनु | प | श्या | मि |
ह | त्वा | स्व | ज | न | मा | ह | वे |