Summary
Nothing but sin would slay these desperadoes and take hold of us. Therefore we should not slay Dhrtarastra's sons, our own relatives.
पदच्छेदः
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निहत्य | निहत्य (√नि-हन् + ल्यप्) |
धार्तराष्ट्रान्नः | धार्तराष्ट्र (२.३)–मद् (६.३) |
का | क (१.१) |
प्रीतिः | प्रीति (१.१) |
स्याज्जनार्दन | स्यात् (√अस् विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–जनार्दन (८.१) |
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः | पाप (१.१)–एव (अव्ययः)–आश्रयेत् (√आ-श्रि विधिलिङ् प्र.पु. एक.)–मद् (२.३)–हत्वा (√हन् + क्त्वा)–एतद् (२.३)–आततायिन् (२.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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नि | ह | त्य | धा | र्त | रा | ष्ट्रा | न्नः |
का | प्री | तिः | स्या | ज्ज | ना | र्द | न |
पा | प | मे | वा | श्र | ये | द | स्मा |
न्ह | त्वै | ता | ना | त | ता | यि | नः |