Summary
Of course, these (Dhrtarastra's sons), with their intellect overpowered by greed, do not see the evil conseences ensuing from the ruin of the family and the sin in cheating friends.
पदच्छेदः
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यद्यप्येते | यदि (अव्ययः)–अपि (अव्ययः)–एतद् (१.३) |
न | न (अव्ययः) |
पश्यन्ति | पश्यन्ति (√दृश् लट् प्र.पु. बहु.) |
लोभोपहतचेतसः | लोभ–उपहत (√उप-हन् + क्त)–चेतस् (१.३) |
कुलक्षयकृतं | कुल–क्षय–कृत (√कृ + क्त, २.१) |
दोषं | दोष (२.१) |
मित्रद्रोहे | मित्र–द्रोह (७.१) |
च | च (अव्ययः) |
पातकम् | पातक (२.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | द्य | प्ये | ते | न | प | श्य | न्ति |
लो | भो | प | ह | त | चे | त | सः |
कु | ल | क्ष | य | कृ | तं | दो | षं |
मि | त्र | द्रो | हे | च | पा | त | कम् |