Summary
When a family ruins, the etnernal duties of the family perish; when the duties perish, impiety inevitably dominates the entire family.
पदच्छेदः
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कुलक्षये | कुल–क्षय (७.१) |
प्रणश्यन्ति | प्रणश्यन्ति (√प्र-नश् लट् प्र.पु. बहु.) |
कुलधर्माः | कुल–धर्म (१.३) |
सनातनाः | सनातन (१.३) |
धर्मे | धर्म (७.१) |
नष्टे | नष्ट (√नश् + क्त, ७.१) |
कुलं | कुल (२.१) |
कृत्स्नमधर्मो | कृत्स्न (२.१)–अधर्म (१.१) |
ऽभिभवत्युत | अभिभवति (√अभि-भू लट् प्र.पु. एक.)–उत (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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कु | ल | क्ष | ये | प्र | ण | श्य | न्ति |
कु | ल | ध | र्माः | स | ना | त | नाः |
ध | र्मे | न | ष्टे | कु | लं | कृ | त्स्न |
म | ध | र्मो | ऽभि | भ | व | त्यु | त |