Summary
To these persons, who are [thus] mingling [with Me] and revere [Me] with love, I grant that knowledge-Yoga by means of which they reach Me.
पदच्छेदः
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तेषां | तद् (६.३) |
सततयुक्तानां | सतत–युक्त (√युज् + क्त, ६.३) |
भजतां | भजत् (√भज् + शतृ, ६.३) |
प्रीतिपूर्वकम् | प्रीति–पूर्वक (२.१) |
ददामि | ददामि (√दा लट् उ.पु. ) |
बुद्धियोगं | बुद्धि–योग (२.१) |
तं | तद् (२.१) |
येन | यद् (३.१) |
मामुपयान्ति | मद् (२.१)–उपयान्ति (√उप-या लट् प्र.पु. बहु.) |
ते | तद् (१.३) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ते | षां | स | त | त | यु | क्ता | नां |
भ | ज | तां | प्री | ति | पू | र्व | कम् |
द | दा | मि | बु | द्धि | यो | गं | तं |
ये | न | मा | मु | प | या | न्ति | ते |