Summary
Having their mind fixed on Me, their life gone into Me, enlightening each other, and constantly talking of Me, they are pleased and are delighted.
पदच्छेदः
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मच्चित्ता | मद्–चित्त (१.३) |
मद्गतप्राणा | मद्–गत (√गम् + क्त)–प्राण (१.३) |
बोधयन्तः | बोधयत् (√बोधय् + शतृ, १.३) |
परस्परम् | परस्पर (२.१) |
कथयन्तश्च | कथयत् (√कथय् + शतृ, १.३)–च (अव्ययः) |
मां | मद् (२.१) |
नित्यं | नित्यम् (अव्ययः) |
तुष्यन्ति | तुष्यन्ति (√तुष् लट् प्र.पु. बहु.) |
च | च (अव्ययः) |
रमन्ति | रमन्ति (√रम् लट् प्र.पु. बहु.) |
च | च (अव्ययः) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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म | च्चि | त्ता | म | द्ग | त | प्रा | णा |
बो | ध | य | न्तः | प | र | स्प | रम् |
क | थ | य | न्त | श्च | मां | नि | त्यं |
तु | ष्य | न्ति | च | र | म | न्ति | च |