Summary
Out of compassion only towards these men, I, who remain as their very Self, destroy with teh shining light of wisdom, their darkness born of ignorance,
पदच्छेदः
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तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं | तद् (६.३)–एव (अव्ययः)–अनुकम्पा–अर्थ (२.१)–मद् (१.१)–अज्ञान–ज (२.१) |
तमः | तमस् (२.१) |
नाशयाम्यात्मभावस्थो | नाशयामि (√नाशय् लट् उ.पु. )–आत्मन्–भाव–स्थ (१.१) |
ज्ञानदीपेन | ज्ञान–दीप (३.१) |
भास्वता | भास्वत् (३.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ते | षा | मे | वा | नु | क | म्पा | र्थ |
म | ह | म | ज्ञा | न | जं | त | मः |
ना | श | या | म्या | त्म | भा | व | स्थो |
ज्ञा | न | दी | पे | न | भा | स्व | ता |