Summary
You are [alone] capable of fully declaring the auspicious manifesting powers of Yours, by which manifesting power You remain pervading these worlds.
पदच्छेदः
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वक्तुमर्हस्यशेषेण | वक्तुम् (√वच् + तुमुन्)–अर्हसि (√अर्ह् लट् म.पु. )–अशेषेण (अव्ययः) |
दिव्या | दिव्य (१.३) |
ह्यात्मविभूतयः | हि (अव्ययः)–आत्मन्–विभूति (१.३) |
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं | यद् (३.३)–विभूति (३.३)–लोक (२.३)–इदम् (२.३)–त्वद् (१.१) |
व्याप्य | व्याप्य (√वि-आप् + ल्यप्) |
तिष्ठसि | तिष्ठसि (√स्था लट् म.पु. ) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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व | क्तु | म | र्ह | स्य | शे | षे | ण |
दि | व्या | ह्या | त्म | वि | भू | त | यः |
या | भि | र्वि | भू | ति | भि | र्लो | का |
नि | मां | स्त्वं | व्या | प्य | ति | ष्ठ | सि |