Summary
O Mighty Yogin ! How should I know You, meditating on You ? In what several entities, O Bhagavat, are You to be contemplated upon by me ?
पदच्छेदः
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कथं | कथम् (अव्ययः) |
विद्यामहं | विद्याम् (√विद् विधिलिङ् उ.पु. )–मद् (१.१) |
योगिंस्त्वां | योगिन् (८.१)–त्वद् (२.१) |
सदा | सदा (अव्ययः) |
परिचिन्तयन् | परिचिन्तयत् (√परि-चिन्तय् + शतृ, १.१) |
केषु | क (७.३) |
केषु | क (७.३) |
च | च (अव्ययः) |
भावेषु | भाव (७.३) |
चिन्त्यो | चिन्त्य (√चिन्तय् + कृत्, १.१) |
ऽसि | असि (√अस् लट् म.पु. ) |
भगवन्मया | भगवन्त् (८.१)–मद् (३.१) |
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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क | थं | वि | द्या | म | हं | यो | गिं |
स्त्वां | स | दा | प | रि | चि | न्त | यन् |
के | षु | के | षु | च | भा | वे | षु |
चि | न्त्यो | ऽसि | भ | ग | व | न्म | या |